मनुस्मृति प्राचीन भारत की प्राचीन धर्मशास्त्र है कई विद्वानों में इसकी रचनाओं को ले कर मत भेद है की ये कितने समय पहले इसकी रचना की गयी थी , कई सारे तथ्य सिर्फ एक तरफ ही इशारा करते है की ये लगभग ६००० साल पहले इसकी रचना की गहि थी ,मनुस्मृति में कुल १२ अध्याय है और और जिनमर २०८४ श्लोक है ,
मनुस्मृति प्रथम 1अध्याय
प्रथम अध्याय में सृष्टि उत्पत्ति, प्रलय की विभिन्न अवस्थाओं, मनुस्मृति का आविर्भाव, मनुस्मृति पढ़ने और पढ़ाने से सम्बंधित नियम तथा अन्त में ग्रंथ की विषयसूची का वर्णन किया गया है।
मनुस्मृति द्वितीय 2 अध्याय
द्वितीय अध्याय में आर्यावर्त की चारों सीमाओं, जलवायु, निवासियों के
चरित्र, सोलह संस्कारों, ज्ञान की उपयोगिता तथा महत्व, ब्रह्मचारी द्वारा गुरुकुल में पालन किए जाने वाले नियमों का उल्लेख किया गया है।
मनुस्मृति तृतीय 3 अध्याय
तृतीय अध्याय में गृहस्थाश्रम, आठ प्रकार के विवाहों, कन्या की पात्रता, श्राद्ध से सम्बंधित नियमों का विधिवत् वर्णन किया गया है।
मनुस्मृति चतुर्थ 4 अध्याय
चतुर्थ अध्याय में गृहस्थाश्रम में रहने वाले गृहस्थ द्वारा पालन योग्य आदर्श आचार संहिता, चरित्र रक्षा, हानिकारक कर्मों से बचने आदि का विस्तार से उल्लेख
किया गया है। इसके अनुसार एक गृहस्थ को दान देने में उदार होने के साथ-साथ अपनी सभी इन्द्रियों पर उचित नियंत्रण रखना आवश्यक है।
मनुस्मृति पंचम 5 अध्याय
पंचम अध्यायमें अभक्ष्य पदार्थों, मांसाहार करने की हानियों, हिंसा, अहिंसा, शुद्धि करने वाले बारह पदार्थों, ईमानदारी से अर्थार्जन करने का महत्व, शरीर के बारह मलों, स्त्री-पुरुष के आदर्श सम्बंधों का विधिवत् वर्णन किया गया है।
मनुस्मृति षष्ठ 6 अध्याय
षष्ठ अध्याय में वानप्रस्थ आश्रम में आचरण करने योग्य नियमों जैसे मांसाहार न करना, प्राणिमात्र के प्रति प्रेम भाव रखना, वस्तुओं को जमा नहीं करना, निन्दा-प्रशंसा से दूर रहना, आलस्य को पूरी तरह त्याग देना, कष्टों को खुशी से सहना, सन्ध्या, प्रभु वन्दना का महत्व, मोक्ष प्राप्ति के लिए चेष्टा करते रहना एवं संन्यास आश्रम के महत्व का उल्लेख किया गया है।
मनुस्मृति सप्तम 7 अध्याय
सप्तम अध्याय में राजा और उसके द्वारा पालन किए जाने वाले नियमों, नीतियों का वर्णन किया गया है जैसे-राजा के आचरणीय धर्म, मंत्रियों से सलाह लेने की रीति, राजदूतों और अन्य दूतों की ईमानदारी परखना, दुर्ग रचना करने की पद्धति, राज्य व्यवस्था करने की विधि, न्यायसंगत कर निर्धारण प्रणाली, राजनीति में साम, दाम, दण्ड, भेद की व्यावहारिकता आदि।
मनुस्मृति अष्टम 8 अध्याय
अष्टम अध्याय में मुख्य रूप से निम्नलिखित विषयों का उल्लेख किया गया। है-राज्य की सीमा तथा कोश की सुरक्षा, विवादों को निपटाने के लिए समुचित विधि अपनाना, धर्म विरुद्ध गवाही देने वाले, झूठ बोलने या धोखा देने वाले और अपराध करने वाले को दण्ड देना तथा दण्ड देते समय व्यक्ति के सामाजिक स्तर तथा अपराध की मात्रा पर विचार करना आदि।
मनुस्मृति नवम 9 अध्याय
नवम अध्याय में महिलाओं और पुरुषों के एक-दूसरे के प्रति कर्तव्य तथा अधिकार, आपातकाल में स्त्रियों को नियोग द्वारा सन्तान उत्पन्न करने का अधिकार, सही उत्तराधिकारी, पुत्र न होने पर उत्तराधिकार निश्चित करने की विधि, बारह प्रकार के पुत्र, दूसरों के अधिकारों का हरण करने वालों को दण्ड देने का वर्णन किया गया है।
मनुस्मृति दशम 10 अध्याय
दशम अध्याय में चारों वर्णों के कर्तव्यों, वर्णसंकर संतान की सामाजिक स्थिति, आपद्धमों, संकट में भी अपने धर्म का पालन करने आदि विषयों का विस्तार से उल्लेख है।
मनुस्मृति एकादश 11 अध्याय
एकादश अध्याय में विहित कर्मों का त्याग, मना किए गए कर्मों को करने पर प्रायश्चित, अभक्ष्य भक्षण, पातकों, गोवध, ब्रह्म हत्या जैसे पातकों और उनको करने पर कठोर प्रायश्चितों को करने, वेद के अनुसार आचरण करना, तप तथा ज्ञान के महत्व आदि का सविस्तार वर्णन किया गया है।
मनुस्मृति द्वादश 12 अध्याय
द्वादश अध्याय में व्यक्ति के कर्मों के अनुसार तीन प्रकार की-उत्तम, मध्यम तथा अधम सांसारिक गतियों, आत्मज्ञान, ब्रह्मवेत्ता की पहचान, परमपद की प्राप्ति के उपाय, सभी को समान दृष्टि से देखने आदि विषयों का विस्तार सहित उल्लेख किया गया है।
उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता कि व्यक्ति की लौकिक एवं पारलौकिक उन्नति और कल्याण करने के साथ ही सामाजिक व्यवस्था को एक सुंदर तथा निश्चित रूप देने की दिशा में इस ग्रंथ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
मनुस्मृति एक ऐसा उपयोगी ग्रंथ है कि आधुनिक समाजशास्त्री भारतीय समाज की अनेक समस्याओं का मूल तथा समाधान खोजने के लिए उसमें निहित ज्ञान की शरण में जाते हैं।