स्वयं प्रकाश जीवन-परिचय –
प्रसिद्ध गद्यकार स्वयं प्रकाश का जन्म सन् 1947 में मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में हुआ था। उनका बचपन राजस्थान में व्यतीत हुआ। वहीं से अध्ययन कार्य पूरा कर मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में नौकरी करने लगे। उनकी नौकरी का भी अधिकांश समय राजस्थान में ही बीता। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद वे वर्तमान में भोपाल में रह रहे हैं। यहाँ वे ‘वसुधा’ पत्रिका के संपादन कार्य से जुड़े हुए हैं। उन्हें अब तक पहल सम्मान, वनमाली पुरस्कार. राजस्थान अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। प्रमुख रचनाएँ- स्वयं प्रकाश जी अपने समय के प्रसिद्ध कहानीकार हैं। अब तक उनके तेरह कहानी संग्रह और पाँच उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं।
उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार है
स्वयं प्रकाश का कहानी संग्रह-
‘सूरज कब निकलेगा, ‘ ‘आएँगे अच्छे दिन भी आदमी जात का आदमी’ और ‘संधान’ उल्लेखनीय हैं।
स्वयं प्रकाश की साहित्यिक विशेषताएँ-
स्वयं प्रकाश मध्यवर्गीय जीवन के कुशल चितेरे हैं। उनकी कहानियों में वर्ग शोषण के विरुद्ध चेतना का भाव देखने को मिलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में हमारे सामाजिक जीवन में जाति, संप्रदाय और लिंग के आधार पर हो रहे भेदभाव के विरुद्ध प्रतिकार के स्वर को उभारा है।
स्वयं प्रकाश की भाषा शैली-
स्वयं प्रकाश ने अपनी रचनाओं के लिए सरल, सहज एवं भावानुकूल भाषा को अपनाया है। उन्होंने लोक प्रचलित खड़ी बोली में अपनी रचनाएँ की तत्सम तद्भव, देशज, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी के शब्दों का बहुलता से प्रयोग है, फिर भी वे शब्द स्वाभाविक बन पड़े हैं। उनके छोटे-छोटे वाक्यों में चुटिलता है। हास्य एवं व्यंग्य उनकी रचनाओं का प्रमुख विषय रहा है। एक वाक्य में विभिन्न भाषाओं के प्रचलित शब्दों का प्रयोग करके एक नई रीति का अवतरण करके पाठक के लिए सहजता से समझने का भाव पैदा कर दिया है।
स्वयं प्रकाश का प्रमुख उपन्यास –
‘बीच में विनय’ ‘इंधन’।