Girija kumar mathur ka jivan parichay | गिरिजाकुमार माथुर जीवन-परिचय

0

गिरिजाकुमार माथुर जीवन-परिचय –

आधुनिक युग की प्रयोगवादी काव्यधारा के लोकप्रिय कवि गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 में मध्य प्रदेश के गुना नामक स्थान पर हुआ। उनको प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के झाँसी नगर में हुई। सन् 1938 में उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज ग्वालियर से बी. एस. सी. और लखनऊ विश्वविदयालय से अंग्रेजी में एम.ए. की परीक्षा पास की शिक्षा समाप्त करने के बाद उन्होंने आकाशवाणी में कार्य आरंभ किया। उसके बाद उन्होंने दूरदर्शन के डिप्टी डायरेक्टर जनरल के पद पर भी कार्य किया और वहीं से वे सेवानिवृत्त हुए। अपने अंतिम समय तक वे स्वतंत्र लेखन कार्य में लगे रहे। सन् 1994 में उनका निधन हो गया।

गिरिजाकुमार माथुर प्रमुख रचनाएँ-

गिरिजाकुमार माथुर की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं

गिरिजाकुमार माथुर काव्य-संग्रह

‘शिला पंख चमकीले ‘धूप के धान’ ‘नाश और निर्माण’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’, ‘जो बंध नहीं सका।

गिरिजाकुमार माथुर नाटक-

‘जन्म कैद ।

गिरिजाकुमार माथुर आलोचना –

‘नई कविता सीमाएँ और संभावनाएँ।

गिरिजाकुमार माथुर साहित्यिक विशेषताएँ-

गिरिजाकुमार माथुर नई कविता के रोमानी मिजाज के कवि माने जाते हैं। उनके काव्य पर छायावाद का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। उनका साहित्य अद्भुत एवं विलक्षण विशेषताओं से युक्त है। उनके काव्य में आनंद रोमांस और संताप की तरल अनुभूति के साथ-साथ लय भी मिलती है। उन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक जीवन की अनुभूतियों को यथार्थ अभिव्यक्ति प्रदान की है। उन्होंने अनुभव एवं संवेदना को उकेरा है। गहन अनुभूति और संवेदनशीलता के कारण ही उनका काव्य सरस और रोचक बन पड़ा है। उन्होंने विषय की मौलिकता पर बल दिया है।

गिरिजाकुमार माथुर भाषा-शैली-

श्री गिरिजाकुमार माथुर की भाषा छायावादी काव्य-भाषा से प्रभावित है। उनके शब्द चयन में तुक तान और अनुमान की काव्यात्मक झलक मिलती है। उन्होंने देशज-विदेशज भाषाओं का विषयानुकूल प्रयोग किया है। उनके द्वारा किया गया अलंकारों का प्रयोग भी स्वाभाविक बन पड़ा है। उन्होंने वर्णनात्मक शैली को अपनाया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here