नागार्जुन (Nagarjun) का जीवन परिचय –
सुप्रसिद्ध जनवादी कवि नागार्जुन (Nagarjun) का अधिकांश काव्य यथार्थ के ठोस धरातल पर आधारित है। वे सर्वहारा वर्ग के प्रतिनिधि कवि है। उनका जन्म सन् 1911 में बिहार प्रदेश के दरभंगा जिले के सतलखा नामक गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था। बचपन दुखो में व्यतीत होने के कारण ही शायद उनके काव्य में पीड़ा का अधिक महत्त्व है। उनके साहित्य से स्पष्ट झलकता है कि उन्होंने बनारस और कोलकाता से शिक्षा ग्रहण की। सन् 1938 में भारत लौटकर वे स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े। वे मस्तमौला और फक्कड़ स्वभाव के थे। उन्होंने अनेक बार संपूर्ण भारत की यात्रा की। वे अपने परिवार और मित्रों में नागा बाबा के नाम से प्रसिद्ध थे। सन् 1998 में उनका देहावसान हो गया।
नागार्जुन (Nagarjun) की प्रमुख रचनाएँ-
नागार्जुन (Nagarjun) की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार है काव्य रचनाएँ युगधारा, प्यासी पथराई आँखें सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियाँ, प्यासी परछाई हजार-हजार बाँहों वाली, तुमने कहा था, खून और शोले, पुरानी जूतियों का कोरस, चना और गर्म।
नागार्जुन (Nagarjun) के उपन्यास-
वरुण के बेटे बलचनमा, रविनाथ को चाची, हीरक जयन्ती, कुम्भीपाक, उग्रतारा, नई पौध आदि। नागार्जुन की सभी रचनाएँ ‘नागार्जुन रचनावली’ के सात भागों में प्रकाशित हैं। साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें हिन्दी अकादमी दिल्ली का शिखर सम्मान, उत्तर-प्रदेश का भारत-भारती पुरस्कार, बिहार का राजेन्द्र प्रसाद पुरस्कार तथा मैथिली भाषा में कविता लिखने के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से विभूषित किया गया। वे मैथिली में ‘यात्री’ नाम से काव्य रचना करते थे।
नागार्जुन (Nagarjun) के साहित्यिक विशेषताएँ-
नागार्जुन (Nagarjun) के काव्य में समाज, राजनीति, दर्शन, कला आदि पर गहरे व्यंग्य किए हैं। उनके काव्य में साम्यवादी विचारधारा के साथ-साथ प्रेम, सौंदर्य और प्रकृति का उदात्त रूप भी देखने को मिलता है। उन्हें आधुनिक कवि भी कहा जाता है। उन्होंने अपनी कविताओं में किसान-मजदूर की दयनीय अवस्था का चित्रांकन किया है। उनके काव्य में राष्ट्रीय भावना का भी मार्मिक और सुंदर चित्रण हुआ है।
नागार्जुन की भाषा-शैली
नागार्जुन (Nagarjun) की शैली सरल सहज आम बोलचाल के शब्दों से युक्त है। उन्होंने सार्थक शब्दों के प्रयोग तथा शब्दों की सादगी पर बल दिया है। उन्होंने श्रृंगार, वीर एवं करुण रस को महत्त्व दिया है। उदात्त एवं गम्भीर भावों का चित्रण तत्सम शब्दों में करने के साथ-साथ उन्होंने उर्दू, अंग्रेजी और आँचलिक शब्दों को भी उदारता से अपनाया है।
नागार्जुन (Nagarjun) के खंडकाव्य –
भस्मांकुर