देव कवि जीवन-परिचय :
देव कवि रीति-काल के श्रेष्ठ कवि थे। उनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। उनका जन्म सन् 1673 ई० में उत्तर प्रदेश के इटावानगर में हुआ था। देव एक प्रतिभावान कवि होने के साथ-साथ श्रेष्ठ आचार्य भी थे। उन्होंने अनेक आश्रयदाताओं के मध्य अपना काव्य-जीवन व्यतीत किया। औरंगजेब के पुत्र आजमशाह से लेकर कुशलसिंह, भवानी दत्त वैश्य, भोगीलाल आदि प्रमुख हैं। उनकी कविता के गुणग्राही आश्रयदाता भोगीलाल से उन्हें सबसे अधिक संतोष और सम्मान प्राप्त हुआ।
देव कवि प्रमुख रचनाएँ –
शिवसिंह ‘सरोज’ के अनुसार देव के ग्रंथों की संख्या 72 है। आचार्य शुक्ल ने अपने इतिहास में इनके 25 ग्रंथों का उल्लेख किया है। परन्तु इनके केवल 15 ग्रंथ ही उपलब्ध हैं जो इस प्रकार हैं
भावविलास, अष्टयाम, कुशल विलास, देवचरित्र, प्रेमतरंग, भवानी विलास रस विलास, प्रेम चंद्रिका, सुजान विनोद, सुख सागर तरंग, काव्य रसायन, राग रत्नाकर, देवमाया, देवशतक, प्रपंच जाति विलास।
देव कवि साहित्यिक विशेषताएँ-
कवि देव की रचनाओं में भाव सौंदर्य और काव्य- कौशल दोनों का समन्वय है। उन्हें ज्योतिष, दर्शन, आयुर्वेद और रामशास्त्र का भी ज्ञान था। उनके काव्य में अनुभूति की सच्चाई, आत्माभिव्यञ्जना भाव- गाम्भीर्य, रसनीयता, गीतिभयता आदि विशेषताएँ देखी जा सकती हैं। देव रसिक व शृंगारी कवि थे। उन्होंने श्रृंगार रस के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का वर्णन किया है किंतु संयोग श्रृंगार में उन्हें विशेष सफलता मिली है। उन्होंने भाव सौंदर्य के अद्भुत चित्र प्रस्तुत किए हैं। उनकी रचनाओं में वस्तुगत अनुभूति, निरपेक्ष सौंदर्य-चित्रण तथा मानसिक अनुभूति का सौंदर्य मिलता है। देव ने अपनी रचनाओं में आचार्यत्व का निर्वाह भी किया है। उन्होंने अधिकांशतः अपनी भक्ति भावना राधा-कृष्ण को अर्पित की है।
देव कवि भाषा-शैली-
देव प्रतिभा सम्पन्न कवि थे। उनके भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों ही सशक्त हैं। उन्होंने मुख्यतः साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने तत्सम शब्दों का भी प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है। उनकी बिम्ब योजना सराहनीय है। उन्होंने विषयानुसार शब्दों का चयन किया है। उनकी अलंकार और छंद-योजना भी अद्भुत है।,