सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन परिचय:–
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला'(Suryakant Tripathi Nirala) हिन्दी के सर्वोच्च कवियों में समाहित है। ये छायावादी काव्यधारा के चार आधारभूत स्तंभों में से एक है। निराला जी ने हिन्दी साहित्य को अपनी महान् कृतियों से अत्यन्त समृद्ध किया। उन्होंने आधुनिक हिन्दी कविता को एक नई दिशा प्रदान की। निराला जी का जन्म पश्चिमी बंगाल के मेदिनीपुर जिले की महिषादल रियासत में सन् 1899 में हुआ था। उनके पिता पंडित रामसहाय त्रिपाठी महिपाल में एक प्रतिष्ठित पद पर कार्यरत थे। निराला जी की आरम्भिक शिक्षा बंगाल में ही हुई थी। निराला जी का सम्पूर्ण जीवन संप में व्यतीत हुआ। शैशवावस्था में उनकी माताजी का निधन हो गया। 1918 में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई और उसके बाद पिता, चाचा, चचेरे भाई एक-एक करके चल बसे। पुत्री सरोज की मृत्यु ने तो उनके हृदय को खण्ड-खण्ड कर दिया। जीवन के संघर्षो से जुझते हुए भी निराला जी साहित्य रचना लगे रहे। सन् 1961 में निराला जी का निधन हो गया।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ साहित्यक रचनाएँ–
निराला जो एक महान साहित्यकार थे। उनका गद्य और काव्य दोनों ही विधाओं पर समान अधिकार था। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ काव्य संग्रह-
‘अनामिका. ‘परिमल’, ‘तुलसीदास,’ ‘गीतिका’ ‘अणिमा,’ ‘कुकुरमुत्ता,’ ‘बेला’ ‘अर्चना’
‘आराधना, ‘ “नये पत्ते’, ‘गीत-गूंज’ आदि।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ कहानी संग्रह –
‘लिली. ‘सखी’ मुकुल की बेटी’, ‘चतुरी चमार’। उपन्यास- ‘अप्सरा’ ‘अलका’, ‘प्रह्लाद’, ध्रुव, ‘शकुंतला’ ‘भीष्म’। रेखाचित्र- ‘कुल्ला घाट’ ‘बिल्ले सुर’, ‘बकरिहा’। आलोचना और निबंध प्रबंध- पद्म’ ‘प्रबंध-प्रतिभा, ‘प्रबंध- परिचय |
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ साहित्यिक विशेषताएं –
कवि निराला एक महान साहित्यकार थे। वे छायावादी काव्यधारा के प्रतिष्ठित कवि थे। उनके काव्य में छायावाद की सभी विशेषताएँ देखी जा सकती हैं। उनको छंद मुक्त काव्य का प्रवर्तक कहा जाता है। निराला जी के मन में दीन-दुखियों के प्रति सहानुभूति थी। उन्होंने अपनी कविताओं में मानवतावादी विचारधारा को प्रकट किया है। उनकी रचनाओं में तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक विषमता का यथार्थ चित्रण मिलता है। उन्होंने आत्मा और परमात्मा के प्रणय संबंधों पर बल दिया है। उनके रहस्यवाद भावना और चिंतन का सुंदर समन्वय है। उनके प्रकृति चित्रण में प्रकृति के मनोरम और भयानक दोनों ही रूप मिलते हैं। उन्होंने साहित्य में बंधनों का विरोध किया है।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ भाषा-शैली
निराला जी का भाषा पर पूर्ण अधिकार था। उनकी भाषा विशुद्ध रूप से तत्सम शब्दावली से परिपूर्ण है। उन्होंने भाषा का स्वच्छंदता से प्रयोग किया है। उनको भाषा भाव के अनुरूप परिवर्तित होती रहती है। अलकारों का भी उन्होंने सहज एवं भावानुकूल प्रयोग किया है। उन्होंने संस्कृतनिष्ठ कोमल शब्दावली का प्रयोग किया है।