Bhagwat Geeta Adhyay 4 Hindi English

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In Bhagwat Geeta Adhyay 4, Lord Krishna preaches about the importance of transcendental knowledge and the importance of a Guru to attain it, Bhagavad Gita Adhyay 4 has 42 verses.

भगवद गीताअध्याय 4 : दिव्य ज्ञान


इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् |
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेSब्रवीत् || १ ||

भावार्थ :भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा – मैंने इस अमर योग विद्या का उपदेश सूर्यदेव विवस्वान् को दिया और विवस्वान् ने मनुष्यों के पिता मनु को उपदेश दिया और मनु ने इसका उपदेश इक्ष्वाकु को दिया |

Bhagwat Geeta in English : Lord Krishna continued: I taught this immortal, everlasting “Yoga faction” (Karmayoga) to the Sun God Vivaswan. Vivaswan taught this knowledge to his son Manu and Manu taught this knowledge to his son Ikswaku.

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदु: |
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप || २ ||


भावार्थ : इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु-परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा | किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई, अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है |

Bhagwat Geeta in English : By handing down this knowledge of Yoga from generation to generation this knowledge slowly deteriorated, and finally disappeared.

स एवायं मया तेSद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः |
भक्तोSसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् || ३ ||


आज मेरे द्वारा वही यह प्राचीन योग यानी परमेश्र्वर के साथ अपने सम्बन्ध का विज्ञान, तुमसे कहा जा रहा है, क्योंकि तुम मेरे भक्त तथा मित्र हो, अतः तुम इस विज्ञान के दिव्य रहस्य को समझ सकते हो |

Bhagwat Geeta in English : O Arjuna, I reveal this ancient and most important secret of Yoga unto you because you are My dear devotee and friend.

अर्जुन उवाच
अपरं भवतो जन्म परं विवस्वतः |
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति || ४ ||


भावार्थ : अर्जुन ने कहा – सूर्यदेव विवस्वान् आप से पहले हो चुके (ज्येष्ठ) हैं, तो फिर मैं कैसे समझूँ कि प्रारम्भ में भी आपने उन्हें इस विद्या का उपदेश दिया था |

Bhagwat Geeta in English : Arjuna asked Lord Krishna: Dear Lord, your birth on earth is very recent. The Sun however, took birth an extremely long time ago. I find it difficult then to understand how you could have told this ancient secret to Vivaswan the Sun God.

श्रीभगवानुवाच
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन |
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप || ५ ||


भावार्थ : श्रीभगवान् ने कहा – तुम्हारे तथा मेरे अनेकानेक जन्म हो चुके हैं | मुझे तो उन सबका स्मरण है, किन्तु हे परंतप! तुम्हें उनका स्मरण नहीं रह सकता है |

Bhagwat Geeta in English : The Lord looked upon Arjuna and replied: Arjuna, the answer to your question is simple. You are forgetting, O Son of Kunti, the both you and I have taken many births in this world together. However, only I, Lord, can remember this; you cannot.

अजोSपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्र्वरोSपि सन् |
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया || ६ ||


भावार्थ : यद्यपि मैं अजन्मा तथा अविनाशी हूँ और यद्यपि मैं समस्त जीवों का स्वामी हूँ, तो भी प्रत्येक युग में मैं अपने आदि दिव्य रूप में प्रकट होता हूँ |

Bhagwat Geeta in English : O Arjuna, although birth and death do not exist for Me, since I am the immortal Lord, I appear on earth, by my Divine powers and ability, keeping My nature (Maya) under control.

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् || ७ ||


भावार्थ :हे भारतवंशी! जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ |

Bhagwat Geeta in English : The Lord declared solemnly unto Arjuna: O Arjuna, whenever good is overcome by evil, or whenever evil manifests itself throughout the world in such a way that good no longer exists. I will always appear on earth.

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || ८ ||


भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ |

Bhagwat Geeta in English : O Arjuna, I appear on earth from time to time for three main purposes. The first is for the protection and preservation of all that represents good, and of all those pure and saintly people on earth. The second purpose for which I appear on earth is for the destruction and removed and wrong-doers. The third purpose is, of course, for the establishment and creation (or recreation) of Dharma (Righteousness or reinstating moral values among people on earth.)

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोSर्जुन || ९ ||


हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है |

Bhagwat Geeta in English : O Arjuna, I was born divinely, all my action (Karma) are divine. The one who knows and understands this fully in reality, is not born again after leaving the body. He comes to me in Heaven for eternity.

वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः |
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः || १० ||


भावार्थ : आसक्ति, भय तथा क्रोध से मुक्त होकर, मुझमें पूर्णतया तन्मय होकर और मेरी शरण में आकर बहुत से व्यक्ति भूत काल में मेरे ज्ञान से पवित्र हो चुके हैं | इस प्रकार से उन सबों ने मेरे प्रति दिव्यप्रेम को प्राप्त किया है |

Bhagwat Geeta in English : O Arjuna, if one really to seek refuge and be one with Me, he must totally free himself from passion, fear and anger, seek my protection only, and purify himself with the fire of Gyan (knowledge). If one manages to accomplish these thing, he will be able to become one with Me in mind and body.

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् |
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः || ११ ||


भावार्थ : जिस भाव से सारे लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूँ | हे पार्थ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का अनुगमन करता है |

Bhagwat Geeta in English : O Arjuna, those people who love, trust and worship Me receive the same love, trust and worship from Me. All wise men follow Me in all respects. They follow my every path.

काङ्न्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः |
क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा || १२ ||


भावार्थ :इस संसार में मनुष्य सकाम कर्मों में सिद्धि चाहते हैं, फलस्वरूप वे देवताओं की पूजा करते हैं | निस्सन्देह इस संसार में मनुष्यों को सकाम कर्म का फल शीघ्र प्राप्त होता है |

Bhagwat Geeta in English : O Arjuna, those who do actions or Karma for the fulfillment of their desires and goals and those who worship deities (gods and god desses) for their prosperity, they will undobtedly achieve success quickly.

चातुवर्ण्यं मया सृष्टं गुण कर्मविभागशः |
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् || १३ ||


भावार्थ : प्रकृति के तीनों गुणों और उनसे सम्बद्ध कर्म के अनुसार मेरे द्वारा मानव समाज के चार विभाग रचे गये | यद्यपि मैं इस व्यवस्था का स्त्रष्टा हूँ, किन्तु तुम यह जाना लो कि मैं इतने पर भी अव्यय अकर्ता हूँ |

Bhagwat Geeta in English : I, the Lord, O Arjuna, am the creator of the four castes (namely, Brahmin, Ksatriya, Vaishya and Sudra). You must understand Arjuna, that I who created these four orders of society, am a non-doer.

न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा |
इति मां योSभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते || १४ ||


भावार्थ : मुझ पर किसी कर्म का प्रभाव नहीं पड़ता, न ही मैं कर्मफल की कामना करता हूँ | जो मेरे सम्बन्ध में इस सत्य को जानता है, वह कभी भी कर्मों के पाश में नहीं बँधता |

Bhagwat Geeta in English : The Lord continued: O Arjuna, since I, the immortal Lord, have no cravings for the fruits of action, I do not desire the reward of Karma. Therefore those who know me well are not affected or bound by Karma (action).

एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षिभिः |
कुरु कर्मैव तस्मात्त्वं पुर्वै: पूर्वतरं कृतम् || १५ ||


भावार्थ : प्राचीन काल में समस्त मुक्तात्माओं ने मेरी दिव्य प्रकृति को जान करके ही कर्म किया, अतः तुम्हें चाहिए कि उनके पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करो |

Bhagwat Geeta in English : The Lord continued: O Arjuna, ancient wise men who were searching for salvation in me, knew the facts well. However they even performed actions. Therefore O Arjuna, continue performing your actions doing your Karma as your ancestors once did in the past.

किं कर्म किमकर्मेति कवयोSप्यत्र मोहिताः |
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेSश्रुभात् || १६ ||


भावार्थ : कर्म क्या है और अकर्म क्या है, इसे निश्चित करने में बुद्धिमान् व्यक्ति भी मोहग्रस्त हो जाते हैं | अतएव मैं तुमको बताऊँगा कि कर्म क्या है, जिसे जानकर तुम सारे अशुभ से मुक्त हो सकोगे |

Bhagwat Geeta in English : Even the wise men are confused about Karma (action) and Akarma (inaction). I shall now explain to you the truth about Karma. Knowing the truth, O Arjuna, you will be released from the bondage of Karma.

कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः |
अकर्मणश्र्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः || १७ ||


भावार्थ : कर्म की बारीकियों को समझना अत्यन्त कठिन है | अतः मनुष्य को चाहिए कि वह यह ठीक से जाने कि कर्म क्या है, विकर्म क्या है और अकर्म क्या है |

Bhagwat Geeta in English : One should know the principle of Karma (action) Akarma (inaction) and forbidden Karma, (forbidden action). The philosophy behind Karma is very deep and mysterious. So listen closely.

कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः |
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् || १८ ||


भावार्थ : जो मनुष्य कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है, वह सभी मनुष्यों में बुद्धिमान् है और सब प्रकार के कर्मों में प्रवृत्त रहकर भी दिव्य स्थिति में रहता है |

Bhagwat Geeta in English : One who sees action (Karma) in inaction (Akarma), and inaction in action, is a wise man and a great sage. That man who has accomplished all actions is a Yogi.

यस्य सर्वे समारम्भाः कामसङ्कल्पवर्जिताः |
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहु: पण्डितं बुधाः || १९ ||


भावार्थ : जिस व्यक्ति का प्रत्येक प्रयास (उद्यम) इन्द्रियतृप्ति की कामना से रहित होता है, उसे पूर्णज्ञानी समझा जाता है | उसे ही साधु पुरुष ऐसा कर्ता कहते हैं, जिसने पूर्णज्ञान की अग्नि से कर्मफलों को भस्मसात् कर दिया है |

Bhagwat Geeta in English : One who does all Karma without desire or attachment for the fruits of his Karma and one whose actions are burnt up in the of Gyan or wisdom, is regarded by even the wise men as a sage.

त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्य तृप्तो निराश्रयः |
कर्मण्यभिप्रवृत्तोSपि नैव किञ्चित्करोति सः || २० ||


भावार्थ :अपने कर्मफलों की सारी आसक्ति को त्याग कर सदैव संतुष्ट तथा स्वतन्त्र रहकर वह सभी प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहकर भी कोई सकाम कर्म नहीं करता |

Bhagwat Geeta in English : The Lord proclaimed: He who is totally unattached to the rewards of action, is forever happy and satisfied, who depends on nobody in this world, and is constantly involved in action, is really performing no action at all.

तत्रापश्यत्स्थितान्‌ पार्थः पितृनथ पितामहान्‌ ।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥
श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्‌ बन्धूनवस्थितान्‌ ॥
कृपया परयाविष्टो विषीदत्रिदमब्रवीत्‌ ।


भावार्थ : इसके बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को, दादों-परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पौत्रों को तथा मित्रों को, ससुरों को और सुहृदों को भी देखा॥26
भावार्थ : उन उपस्थित सम्पूर्ण बंधुओं को देखकर वे कुंतीपुत्र अर्जुन अत्यन्त करुणा से युक्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले। ॥27

Bhagwat Geeta in English : ARJUNA, gazed upon the army and then saw in both armies, paternal uncles, grandfathers, teachers, maternal uncles, cousins, sons, grandsons, friends, fathers-in-law, and well-wishers. The son of KUNTI (Arjuna), after viewing all of those relatives and friends posted in their positions on the battlefield, became melancholy and filled with compassion (love) for his relatives, and spoke in a sad voice:

निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः |
शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम् || २१ ||


भावार्थ :ऐसा ज्ञानी पुरुष पूर्णरूप से संयमित मन तथा बुद्धि से कार्य करता है, अपनी सम्पत्ति के सारे स्वामित्व को त्याग देता है और केवल शरीर-निर्वाह के लिए कर्म करता है | इस तरह कार्य करता हुआ वह पाप रूपी फलों से प्रभावित नहीं होता है |

Bhagwat Geeta in English : That person, O Arjuna, who has conquered his body and mind, who has given up all enjoyments and pleasures of the world, and who performs action only for the sake of maintaining his body, does not encounter or subiect himself to sin.

यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः |
समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते || २२ ||


भावार्थ : जो स्वतः होने वाले लाभ से संतुष्ट रहता है, जो द्वन्द्व से मुक्त है और ईर्ष्या नहीं करता, जो सफलता तथा असफलता दोनों में स्थिर रहता है, वह कर्म करता हुआ भी कभी बँधता नहीं |

Bhagwat Geeta in English : A person who is content with what he has who has no feeling of desire for other things, or uncertainty of any type, who has shed his envious feelings and who is above all even-minded in success and failure, such a person is no longer bound by Karma even if he still performs Karma.

गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः |
यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते || २३ ||


भावार्थ : जो पुरुष प्रकृति के गुणों के प्रति अनासक्त है और जो दिव्य ज्ञान में पूर्णतया स्थित है, उसके सारे कर्म ब्रह्म में लीन हो जाते हैं |

Bhagwat Geeta in English : Lord Krishna continued: A person who has no attachment to anything whatsoever in this world, whose heart is set on acquiring Gyan (wisdom), who works for the sake of sacrifice, and is a totally liberated person from the world, all actions for this person melt away and are meaningless.

ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् |
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना || २४ ||


भावार्थ : जो व्यक्ति कृष्णभावनामृत में पूर्णतया लीन रहता है, उसे अपने आध्यात्मिक कर्मों के योगदान के कारण अवश्य ही भगवद्धाम की प्राप्ति होती है, क्योंकि उसमें हवन आध्यात्मिक होता है और हवि भी आध्यात्मिक होती है ।

Bhagwat Geeta in English : The offerings in a sacrifice are Brahma (God), the sacrificial fire is Brahma (God), the one who performs the sacrifice is Brahma, the sacrifice itself is Brahma, the person performing the action of sacrifice is placed in Brahma and will reach Brahma, the ultimate goal of sacrifice.

दैवमेवापरे यज्ञं योगिनः पर्युपासते |
ब्रह्मग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति || २५ ||


भावार्थ :कुछ योगी विभिन्न प्रकार के यज्ञों द्वारा देवताओं की भलीभाँति पूजा करते हैं और कुछ परब्रह्म रूपी अग्नि में आहुति डालते हैं |

Bhagwat Geeta in English : The Lord continued: Some Yogis prefer to perform sacrifice through the worship of deities (gods and god esses): other Yogis perform sacrifice to Brahma in the form of fire.

श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति |
शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति || २६ ||


भावार्थ :इनमें से कुछ (विशुद्ध ब्रह्मचारी) श्रवणादि क्रियाओं तथा इन्द्रियों को मन की नियन्त्रण रूपी अग्नि में स्वाहा कर देते हैं तो दूसरे लोग (नियमित गृहस्थ) इन्द्रियविषयों को इन्द्रियों की अग्नि में स्वाहा कर देते हैं |

Bhagwat Geeta in English : Some offer, in the fire of self-control, one of their senses such as their hearing. (This signifies that the signifies has no attachment to any of his senses.) Others offer sensual objects (objects of perception), such as sound, in the fire of controlled senses.

सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे |
आत्मसंयमयोगग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते || २७ ||


भावार्थ :दूसरे, जो मन तथा इन्द्रियों को वश में करके आत्म-साक्षात्कार करना चाहते हैं, सम्पूर्ण इन्द्रियों तथा प्राणवायु के कार्यों को संयमित मन रूपी अग्नि में आहुति कर देते हैं |

Bhagwat Geeta in English : Some Yogis sacrifice all the functions of their senses ans all their vital functions of life, into the fire of Yoga, in the shape of self control, which is kindled by Gyan (wisdom). (This signifies the sacrificer’s one-mindedness with the Lord, the Supreme Goal).

द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथापरे |
स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्र्च यतयः संशितव्रताः || २८ ||


भावार्थ :कठोर व्रत अंगीकार करके कुछ लोग अपनी सम्पत्ति का त्याग करके, कुछ कठिन तपस्या द्वारा, कुछ अष्टांग योगपद्धति के अभ्यास द्वारा अथवा दिव्यज्ञान में उन्नति करने के लिए वेदों के अध्ययन द्वारा प्रबुद्ध बनते हैं |

Bhagwat Geeta in English : Sacrifices come in many forms. Giving away material wealth for charity is a sacrifice. Austerity is a sacrifice. Yoga is a sacrifice. Making vows and promises involve sacrifice. Even self-study is a sacrifice.

अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेSपानं तथापरे |
प्राणापानगति रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः |


भावार्थ : अन्य लोग भी हैं जो समाधि में रहने के लिए श्र्वास को रोके रहते हैं (प्राणायाम) | वे अपान में प्राण को और प्राण में अपान को रोकने का अभ्यास करते हैं और अन्त में प्राण-अपान को रोककर समाधि में रहते हैं | अन्य योगी कम भोजन करके प्राण की प्राण में ही आहुति देते हैं |

Bhagwat Geeta in English : Other Yogis (wise men) perform sacrifice by controlling the amount of breaths they take. By holding in their breath for a long periond of time while pronouncing My name, they increase their life’s longevity. This act is known as PRANAYAM.

सर्वेSप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः |
यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम् || ३० |||


भावार्थ : ये सभी यज्ञ करने वाले यज्ञों का अर्थ जानने के कारण पापकर्मों से मुक्त हो जाते हैं और यज्ञों के फल रूपी अमृत को चखकर परम दिव्य आकाश की ओर बढ़ते जाते हैं |

Bhagwat Geeta in English : Others perform sacrifice by controlling what they eat,(fasting). Those whose sins have been destroyed by sacrifice, understand the power and importance of sacrifice.

नायं लोकोSस्त्ययज्ञस्य कुतोSन्यः कुरुसत्तम || ३१ ||


भावार्थ :हे कुरुश्रेष्ठ! जब यज्ञ के बिना मनुष्य इस लोक में या इस जीवन में ही सुखपूर्वक नहीं रह सकता, तो फिर अगले जन्म में कैसे रह सकेगा?

Bhagwat Geeta in English : O Arjuna, only those people who have sacrificed to achieve wisdom and knowledge of Gyan, go to Brahma, (the creator of all beings and God of Wisdom in the World). Without performing some sort of sacrifice in life, one cannot possibly remain happy in this world, not to mention the afterworld.

एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे |
कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे || ३२ ||


भावार्थ : ये विभिन्न प्रकार के यज्ञ वेदसम्मत हैं और ये सभी विभिन्न प्रकार के कर्मों से उत्पन्न हैं | इन्हें इस रूप में जानने पर तुम मुक्त हो जाओगे |

Bhagwat Geeta in English : The Lord continued: O Arjuna, many sacrifices are mentioned extensively throughout the Vedas. All of these sacrifices involve some sort of action or Karma to be performed. With this knowledge in mind, you will achieve the state of unattached Karma, or action done without the expectation of any results.

श्रेयान्द्रव्यमयाज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप |
सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते || ३३ ||


भावार्थ : हे परंतप! द्रव्ययज्ञ से ज्ञानयज्ञ श्रेष्ठ है | हे पार्थ! अन्ततोगत्वा सारे कर्मयज्ञों का अवसान दिव्य ज्ञान में होते है |

Bhagwat Geeta in English : O Arjuna, sacrifice of wisdom (Gyan) is always better than sacrifice of material objects because all actions end with Gyan.

तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया |
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः || ३४ ||


भावार्थ :तुम गुरु के पास जाकर सत्य को जानने का प्रयास करो | उनसे विनीत होकर जिज्ञासा करो और उनकी सेवा करो | स्वरुपसिद्ध व्यक्ति तुम्हें ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने सत्य का दर्शन किया है |

Bhagwat Geeta in English : The Lord advised: O Arjuna, learn the principles of Gyan and ask questions about Gyan respectfully and with determination, from those who fully understand the principles of Gyan.

यज्ज्ञात्वा न पुनार्मोह मेवं यास्यसि पाण्डव |
येन भूतान्यशेषाणि द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि || ३५ ||


भावार्थ : स्वरुपसिद्ध व्यक्ति से वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर चुकने पर तुम पुनः कभी ऐसे मोह को प्राप्त नहीं होगे क्योंकि इस ज्ञान के द्वारा तुम देख सकोगे कि सभी जीव परमात्मा के अंशस्वरूप हैं, अर्थात् वे सब मेरे हैं |

Bhagwat Geeta in English :The Lord continued: O Arjuna, through Gyan, you will see all beings within yourself, and thereafter, all beings in Me.

अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः |
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि || ३६ ||


भावार्थ :यदि तुम्हें समस्त पापियों में भी सर्वाधिक पापी समझा जाये तो भी तुम दिव्यज्ञान रूपी नाव में स्थित होकर दुख-सागर को पार करने में समर्थ होगे ।

Bhagwat Geeta in English : O Arjuna, even if you are the greatest sinner in the world, this river of sins can be crossed with the boat of Gyan.

यथैधांसि समिद्धोSग्निर्भस्मसात्कुरुतेSर्जुन |
ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा || ३७ ||


भावार्थ : जैसे प्रज्ज्वलित अग्नि ईंधन को भस्म कर देती है, उसी तरह हे अर्जुन! ज्ञान रूपी अग्नि भौतिक कर्मों के समस्त फलों को जला डालती है ।

Bhagwat Geeta in English : O Arjuna, as the burnig fire reduces fuel to ashes, in this same way, Karma (attached Karma binding a person to the material world), is burnt down with the fire of Gyan.

न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते |
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति || ३८ ||


भावार्थ :इस संसार में दिव्यज्ञान के सामान कुछ भी उदात्त तथा शुद्ध नहीं है | ऐसा ज्ञान समस्त योग का परिपक्व फल है | जो व्यक्ति भक्ति में सिद्ध हो जाता है, वह यथासमय अपने अन्तर में इस ज्ञान का आस्वादन करता है |

Bhagwat Geeta in English : In this world, O Arjuna, there is no greater purifier than Gyan or wisdom itself. The person who has mastered Yoga to perfection feels wisdom in his soul at the proper time.

श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः |
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति || ३९ ||


भावार्थ :जो श्रद्धालु दिव्यज्ञान में समर्पित है और जिसने इन्द्रियों को वश में कर लिया है, वह इस ज्ञान को प्राप्त करने का अधिकारी है और इसे प्राप्त करते ही वह तुरन्त आध्यात्मिक शान्ति को प्राप्त होता है |

Bhagwat Geeta in English : To abtain Gyan, one must conquer the senses, and develop a real devotion and faith towards the Lord. When one obtains Gyan, he has discovered the key to Supreme peace.

अज्ञश्र्चाद्यधानश्र्च संशयात्मा विनश्यति |
नायं लोकोSस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः || ४० ||


भावार्थ :किन्तु जो अज्ञानी तथा श्रद्धाविहीन व्यक्ति शास्त्रों में संदेह करते हैं, वे भगवद्भावनामृत नहीं प्राप्त करते, अपितु नीचे गिर जाते है | संशयात्मा के लिए न तो इस लोक में, न ही परलोक में कोई सुख है |

Bhagwat Geeta in English : If a person is ignorant of the Knowledge of God, the person who lacks faith in God and the one who is full of doubts in his own self, will undoubtedly be destroyed. If one has doubts, he can never achieve peace and Bliss in the world, nor in the after-world.

योगसन्न्यस्तकर्माणं ज्ञानसञ्छिन्नसंशयम् |
आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय || ४१ ||


भावार्थ :जो व्यक्ति अपने कर्मफलों का परित्याग करते हुए भक्ति करता है और जिसके संशय दिव्यज्ञान द्वारा विनष्ट हो चुके होते हैं वही वास्तव में आत्मपरायण है | हे धनञ्जय! वह कर्मों के बन्धन से नहीं बँधता |

Bhagwat Geeta in English : One who has rid himself of attached Karma by practising Yoga and one who has rid himself of doubts by achieving Gyan, he is a self-realized person and is not bound by attached Karma.

Bhagavad Gita Adhyay 5


तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मनः |
छित्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत || ४२ ||


भावार्थ :अतएव तुम्हारे हृदय में अज्ञान के कारण जो संशय उठे हैं उन्हें ज्ञानरूपी शस्त्र से काट डालो | हे भारत! तुम योग से समन्वित होकर खड़े होओ और युद्ध करो |

Bhagwat Geeta in English : Hence, be established in yoga by cutting the ignorance born doubt about the self with the sword of knowledge. Stand up, O Bharata.

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